श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग श्रीसैलम, आंध्रप्रदेश की विस्तृत जानकारी - GYAN OR JANKARI

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मंगलवार, 22 दिसंबर 2020

श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग श्रीसैलम, आंध्रप्रदेश की विस्तृत जानकारी

श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग श्रीसैलम, आंध्रप्रदेश की विस्तृत जानकारी


श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर  का महत्त्व 

श्री मल्लिकार्जुन महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है। यह मंदिर भारत के आंध्रप्रदेश राज्य के कुर्नूल जिले में नल्लमालई पहाड़ी पर कृष्णा नदी के दायीं और स्थित है। श्री मल्लिकार्जुन महादेव मंदिर को श्रीसैलम के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर की गिनती भगवान शिव के परम पवित्र 12 ज्योतिर्लिंग मंदिरों में होती है, इसके अलावा इस मंदिर की गिनती देवी भ्रामराम्बा के 18 महाक्षेत्रों में भी की जाती है। इस मंदिर में स्थित शिवलिंग और देवी भ्रामराम्बा का महाक्षेत्र दोनों स्वयंभू माने जाते है। इस मंदिर में शिव और शक्ति का अद्भुत सहअस्तित्व देखने को मिलता है, इस प्रकार की अनूठी विशेष्ता वाला यह एक मात्र मंदिर है। 

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श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर, आंध्रप्रदेश

श्री मल्लिकार्जुन महादेव मंदिर परिसर में ही देवी जगदम्बा को समर्पित एक मंदिर स्थित है, देवी जगदम्बा को यहां भ्रामराम्बा के नाम से जाना जाता है। देवी भ्रामराम्बा के मंदिर का बड़ा महत्त्व माना जाता है। कहा जाता है देवी जगदम्बा ने यहां पर क्रूर राक्षस अरुणासुर को मारने के लिए भ्रामराम (मधुमक्खी) के रूप में भगवान शिव की तपस्या की थी, और फिर बाद में इसी जगह को अपना निवास स्थान बनाया था। एक अन्य कथा के अनुसार प्रजापति दक्ष के यज्ञ के दौरान देवी सती की गर्दन का हिस्सा इस स्थान पर रखा गया था, इसलिए यह स्थान एक शक्तिपीठ बन गया। 


श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कहानी 

शिव पुराण की कथा के अनुसार भगवान श्री गणेश और उनके भाई भगवान कार्तिकेय पहले विवाह करने लिए आपस में झगड़ने लगे, तब भगवान शिव ने कहा की जो भी सृष्टि का चक्कर लगाकर पहले वापस आएगा उसी का विवाह पहले किया जायेगा। कार्तिकेय सृष्टि का चक्कर लगाने के लिए चले गए और गणेश जी ने अपने माता-पिता के चक्कर लगा लिए। जब कार्तिकेय सृष्टि का चक्कर लगाकर लौटे तो गणेश जी को पहले विवाह करते हुए देखकर वे भगवान शिव और माता पार्वती से नाराज हो गए। भगवान शिव और माता पार्वती ने उन्हें बहुत समझाया लेकिन उनके रोकने के बावजूद कार्तिकेय क्रंच पर्वत पर चले गए। सभी देवताओं ने भगवान कार्तिकेय को बहुत समझाया परन्तु वे नहीं माने। इस घटना से भगवान शिव और माता पार्वती बहुत दुखी हुए और उन दोनों ने फैसला किया की वे दोनों स्वयं क्रंच पर्वत जायेंगे। 

जब कार्तिकेय को पता चला की भगवान शिव और माता पार्वती क्रंच पर्वत आ चुके है, तो वे वहाँ से भी चले गए। अंत में भगवान शिव और माता पार्वती कार्तिकेय से मिलने की लालसा में ज्योतिरूप धारण करके उसी पर्वत पर एक शिवलिंग के अंदर मल्लिकार्जुन के नाम से निवास करने लगे। ऐसी मान्यता है की भगवान शिव और माता पार्वती हर त्यौहार पर कार्तिकेय को देखने के लिए साक्षात् रूप में यहाँ आते है। और ऐसी भी मान्यता है की भगवान शिव प्रत्येक अमावस्या को और माता पार्वती प्रत्येक पूर्णिमा को यहाँ आते है। ऐसा माना जाता है की श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने मात्र से व्यक्ति के सभी पापों का नाश हो जाता है। 


वृद्ध मल्लिकार्जुन की कहानी 

प्राचीन समय में एक राजकुमारी भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी, इसलिए वह हमेशा भगवान शिव की पूजा में लगी रहती थी। एक दिन भगवान शिव ने उसे स्वप्न में दर्शन दिए और उससे कहा की कल तुम्हे एक अद्भुत मधुमक्खी दिखेगी, उसका पीछा करना करना और जहाँ वह बैठ जाये उस स्थान पर मेरा इन्तजार करना। अगले दिन जब राजकुमारी उठती है, तो उसे एक मधुमक्खी दिखाई  देती है। राजकुमारी उसका पीछा करते-करते श्रीसैलम पर्वत पर पहुंच जाती है। अंत में मधुमक्खी एक चमेली की झाड़ी पर बैठ जाती है, और राजकुमारी उसी चमेली की झाड़ी के पास बैठकर भगवान शिव की प्रतीक्षा करने लगती है। राजकुमारी कई दिनों तक वहां बैठ कर भगवान शिव की प्रतीक्षा करती रहती है। इस दौरान वहाँ के स्थानीय आदिवासी जिन्हे चेंचू कहते है, वे राजकुमारी की अपनी पुत्री के सामान देखभाल करते है, और उसे प्रतिदिन शहद और जंगली फलों का भोजन कराते रहते हैं। 


अंत में भगवान शिव एक वृद्ध का रूप धारण करते हैं और राजकुमारी के पास आकर कहते है, की तुम्हें ढूंढ़ते-ढूंढ़ते मै बूढ़ा हो चुका हूँ, क्या तुम मुझसे विवाह करोगी। राजकुमारी विवाह के लिए सहमत हो जाती है। विवाह के अवसर पर चेंचू आदिवासियों ने वर वधु को रात के भोजन के लिए आमंत्रित किया और भोजन में मांस और पेय पदार्थ परोसा। भगवान शिव ने उस भोजन को स्वीकार नहीं किया, लेकिन राजकुमारी भोजन के लिए जोर डालने लगी। अंत में भगवान शिव उस स्थान से जाने लगे, राजकुमारी  ने उन्हें कई बार बुलाया लेकिन भगवान शिव ने उसकी बात नहीं सुनी, और अंत में राजकुमारी ने भगवान शिव को पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया और भगवान शिव उसी समय शिवलिंग के रूप वहाँ स्थापित हो गए। 


आज भी श्री मल्लिकार्जुन महादेव मंदिर (श्रीशैलम) परिसर में एक वृद्ध मल्लिकार्जुन शिवलिंग स्थित है, यह शिवलिंग 70 से 80 हजार वर्ष पुराना माना जाता है। स्थानीय चेंचू आदिवासीयों में आज भी एक कथा प्रचलित है, जिसके अनुसार भगवान शिव एक शिकारी के रूप में श्रीशैलम वन में आये थे और एक चेंचू लड़की से विवाह करके पहाड़ी पर बस गए थे। इस कहानी  के आधार पर चेंचू आदिवासी श्री मल्लिकार्जुन महादेव को अपना रिस्तेदार समझते है और उन्हें चेंचू मलैया कहतें है। यह कहानी मंदिर की दीवारों पर भी उकेरी गयी है। 


श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर का वास्तुशिल्प 

श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर 2 हेक्टेयर से अधिक के विशाल क्षेत्र में फैला है, पूरा मंदिर परिसर विशाल पत्थरों से बनी प्राकर्म दीवार से घिरा है। मंदिर में प्रवेश करने के लिए चार मुख्य द्वार है, जिनके ऊपर भव्य गोपुरम बने हुए हैं। पूर्वी द्वार को महाद्वाराम कहा जाता है। मंदिर परिसर में कई मंदिर और मंडप बने हुए है, उनमे से मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर और देवी भ्रामरामबा का मंदिर सबसे प्रमुख हैं। इनके अलावा कुछ छोटे मंदिर जैसे वृद्ध मल्लिकार्जुन, सहस्त्र लिंगेश्वर, अर्धनारीश्वर, उमामहेश्वर और वीरभद्र के मंदिर स्थित हैं। इनके अलावा पांच मंदिरों समूह जिनका नाम पांडव नथिस्टा मंदिर और नौं मंदिरों का समूह जिन्हें नवब्रह्म मंदिर कहा जाता है, ये भी मंदिर परिसर के भीतर ही स्थित हैं। सभी छोटे बड़े मंदिरों को पत्थरों से बनाया गया है और सभी मंदिरों पर अद्बुध नक्काशी देखने को मिलती है।  


पूर्वी द्वार जिसे महाद्वाराम कहा जाता है, उससे अंदर जाने पर विशाल नांदीमंडपम आता है। नंदीमंडपम में 42 खंबे लगे हुए है। नांदीमंडपम को कई हिस्सों में बांटा गया है, जिनमे मछलियों, हंसों और हाथियों के जुलुस की अध्बुध कलाकृतियाँ बनाई गयी है। नांदीमंडपम के पूर्वी हिस्से पर द्वारपाल की कलाकृतियाँ उकेरी गयी हैं। नांदीमंडपम का मध्य भाग थोड़ा उठा हुआ है जिस पर 10 फ़ीट ऊंची और 20 फ़ीट लम्बी नंदी की विशाल मूर्ति स्थित है। 


नांदीमंडपम के आगे वीरसिरोमंडपम स्थित है यह एक खुला मंडपम है, इसमें 16 खंबे लगे हुए है।  इस मंडपम का मध्य भाग थोड़ा उठा हुआ है जहाँ एक वर्गाकार संरचना के मध्य एक चक्र बना हुआ है। इस मंडपम की छत के मध्य भाग में एक षट्कोणा उभा हुआ है जिसमे कमल उकेरा गया है। 


वीरसिरोमंडपम के आगे श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर स्थित है। यह मंदिर पुरे परिसर के मध्य में स्थित है। मंदिर का मुख पूर्व दिशा की ओर की ओर है। श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर के तीन मुख्य हिस्से है जिन्हे मुखमंडप, अन्तराला और गर्भगृह कहा जाता है। मुखमंडप वीरसिरोमंडपम के आगे स्थित है। मुखमंडप 41 फ़ीट लम्बा और 41 फ़ीट चौड़ा एक विशाल और बंद हॉल है , इस मंडप को महामंडप के नाम से भी जाना जाता है। इस मंडप के पूर्व, उत्तर और दक्षिण दिशा में द्वार बनाये गए है, ये सभी द्वार चांदी की चददर से पूरी तरह ढके गए है। 

मुखमंडप के आगे अन्तराला स्थित है, जो एक सरल संरचना है, इसके द्वार के दोनों तरफ द्वारपालक उकेरे गए है, तथा इस मंडप के भीतर शिव के कई रूपों की मूर्तियां उकेरी गयी है जैसे  अर्धनारीश्वर मूर्ति, नटराज मूर्ति, सोमस्कन्द मूर्ति, चंद्रशेखर मूर्ति आदि। 

मुखमंडप के आगे गर्भगृह स्थित है, गर्भगृह 60 वर्ग फुट की एक छोटी जगह बना हुआ है, इसलिए यहाँ एक बार में बहुत कम लोग ही दर्शन के सकते है। गर्भगृह का प्रवेशद्वार बहुत सजावटी बनाया गया है। गर्भगृह के भीतर स्वयंभू ज्योतिर्लिंग स्थित है जिसकी ऊंचाई लगभग 25 सेंटीमीटर है। गर्भगृह के शिखर को विमाना कहा जाता है, शिखर को नौं तलों (स्टेप्स) में चरणबद्ध पिरामिड के सामान बनाया गया है, जिनके ऊपर शिखर के केंद्रीय भाग में आठ पंखुड़ियों वाले कमल के ऊपर एक पूर्णकुंभ स्थित है। गर्भगृह के शिखर को पूरी तरह शुद्ध स्वर्ण की प्लेटों से मढ़ा गया है। 

 

श्री भ्रामराम्बा मंदिर का वास्तुशिल्प 

श्री भ्रामराम्बा मंदिर श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर के पीछे, पश्चिमी गोपुरम के निकट एक ऊंचे स्तर पर स्थित है, इस मंदिर का मुख भी पूर्व दिशा की ओर है। यह मंदिर एक चारदीवारी के अंदर स्थित है, जिसके द्वार पर एक गोपुरम बना हुआ है। यह मंदिर गर्भगृह और मुखमंडपा से युक्त है। मुख्मंडपा को 1964 - 65 में 24 खम्भों वाले प्रदक्षिणा मंडप से जोड़ा गया था। मुखमण्डपा की बाहरी निचली दिवारों पर नृत्य करती हुई मूर्तियां उकेरी गयी है। गर्भगृह सामने वाली मुखमण्डपा की भीतरी दिवार पर पत्थरों में श्रीचक्र स्थापित किया गया है,  जिसकी प्रतिदिन पूजा की जाती है। 


गर्भगृह एक चौकोर संरचना है, जिसकी बाहरी दिवारों पर विजयनगर शैली में रामायण के द्रश्यों को उकेरा गया है।  गर्भगृह के दरवाजो पर कमल के पत्तों का डिजाइन बनाया गया है। दरवाजो की चौखट को चांदी की प्लेटों से सजाया गया है। गर्भगृह के अंदर देवी भ्रामराम्बा की मूर्ति आठ हाथों वाली है, जो खड़ी मुद्रा  स्थित है और जिन्हे महिषासुर मर्दिनी रूप में दिखाया गया है। देवी अपने बायें पैर के निचे  राक्षस महिषासुर को रख रहीं है, और अपने दाहिनें हाथ में स्थित त्रिशूल से उस पर प्रहार कर रहीं है। देवी भ्रामराम्बा के अन्य हाथों में तलवार, गदा, धनुष, ढाल और अन्य शस्त्र स्थित है। देवी भ्रामराम्बा मंदिर शिखर को भी विमाना कहा जाता है और जिसे पूरी तरह शुद्ध स्वर्ण से मढ़ा गया है। 


श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर परिसर के भीतर स्थित नांदीमंडपम, वीरसिरोमंडपम, श्री मल्लिकार्जुन मंदिर, श्री भ्रामराम्बा देवी मंदिर सभी पूर्व से पश्चिम ओर एक पंक्ति में स्थित है।