श्री केदारनाथ मंदिर की जानकारी Sri Kedarnath Temple - GYAN OR JANKARI

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गुरुवार, 26 नवंबर 2020

श्री केदारनाथ मंदिर की जानकारी Sri Kedarnath Temple

श्री केदारनाथ मंदिर की जानकारी Sri Kedarnath Temple


श्री केदारनाथ मंदिर का परिचय 

श्री केदारनाथ मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित एक अत्यंत प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है, यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। श्री केदारनाथ मंदिर की गिनती भगवान शिव के परम पवित्र 12 ज्योतिर्लिंग और पंचकेदार मंदिरों में की जाती है। यहां स्थित शिवलिंग स्वयंभू है, जिसका आकर बैल की पीठ के समान है। इस मंदिर का निर्माण पांच हजार वर्ष पूर्व पांडवों के वंशज तथा राजा परीक्षित के पुत्र जन्मेजय ने करवाया था, तथा 8 वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। केदारनाथ मंदिर जिस स्थान पर बना है, उस स्थान पर महातपस्वी नर और नारायण ने तपस्या की थी। श्री केदारनाथ मंदिर से श्री बद्रीनाथ मंदिर की सीधी दुरी लगभग 41 किलोमीटर है। श्री बद्रीनाथ मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। ऐसा माना जाता है की श्री बद्रीनाथ की यात्रा से पहले श्री केदारनाथ की यात्रा की जाती है, नहीं तो यात्रा निष्फल मानी जाती है। माना जाता है, की श्री केदारनाथ और श्री बद्रीनाथ की यात्रा करने से सभी पापों का नाश हो जाता है, और मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

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Kedarnath Temple

श्री केदारनाथ मंदिर की कहानी 

महाभारत के युद्ध में विजयी होने के बाद पांडव युद्ध में हुए भीषण संहार के पाप से मुक्त होना चाहते थे, इसके लिए वे भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते थे, इसलिए पांडव भगवान शिव के दर्शन करने के लिए काशी गए, लेकिन भगवान शिव पांडवों से नाराज थे, इसलिए वे उन्हें वहाँ नहीं मिले। इसके बाद पांडव भगवान शिव को खोजते हुए हिमालय पहुंचे, लेकिन भगवान शिव हिमालय से अद्रश्य होकर केदार घाटी जा पहुंचे। पांडव भी भगवान् शिव पीछा करते हुए केदार घाटी जा पहुंचे। तब भगवान शिव ने एक बैल का रूप धारण कर लिया और घाटी में विचरने वाले अन्य पशुओं में मिल गए। 

 

पांडवों को संदेह हो गया की भगवान शिव ने पशु का रूप धारण कर लिया है, अतः भीम ने अतिविशाल रूप धारण किया और दो पहाडों पर पैर फैलाकर खड़े हो गए। अन्य पांडव सारे पशुओं को भीम की तरफ हाँकने लगे, अन्य सब पशु तो भीम के पैरों के नीचे से निकल गए परन्तु बैल रूपी भगवान शिव भीम के पैरों के नीचे से निकलने को तैयार नहीं हुए और वे भूमि में अंतर्ध्यान होने लगे। यह देख कर भीम बैल पर झपटे और उन्होंने बैल की पीठ को पकड़ लिया और बैल को पूरी तरह जमीन में धंसने से रोक दिया। उसी समय बैल की पीठ शिवलिंग में परिवर्तित हो गयी। यही शिवलिंग श्री केदारनाथ शिवलिंग के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 

 

पांडवों की भक्ति और दृढ़संकल्प को देखकर भगवान शिव अति प्रसन्न हुए और उन्होंने पांडवों को दर्शन दिए और उन्हें आशीर्वाद देकर युद्ध में हुए भीषण संहार के पाप से मुक्त कर दिया। बाद में पांडवों के प्रपोत्र जन्मेजय ने इस स्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। 


केदारनाथ मंदिर की स्थिति 

श्री केदारनाथ मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित केदार पर्वत की तलहटी में स्थित है, समुद्र तल से इस मंदिर की उचाई 3583 मीटर (11755 फुट ) है। यह मंदिर तीन तरफ से पहाडों से घिरा है, एक ओर 22000 फुट ऊंचा केदार पर्वत है, दूसरी तरफ 21600 फुट ऊंचा खर्चकुंड है, तीसरी तरफ 22700 फुट ऊंचा भरतकुंड है।  यह मंदिर मंदाकिनि नदी के पास स्थित है, इस मंदिर से कुछ दुरी पर भैरवनाथ का मंदिर भी स्थित है।  


श्री केदारनाथ का वास्तुशिल्प

श्री केदारनाथ मंदिर 187 फुट लम्बा और 80 फुट चौड़ा है तथा इस मंदिर की उचाई 85 फ़ीट है। इस मंदिर का निर्माण पूरी तरह से पत्थरों से किया गया है। इस मंदिर की दीवारें 12 फुट मोटी है। इस मंदिर की विशाल छत एक ही पत्थर से बनाई गयी है। पुरे मंदिर में पत्थरों को आपस में इंटरलॉकिंग तकनीक से जोड़ा गया है। यह पूरी मंदिर संरचना 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर स्थित है। श्री केदारनाथ मंदिर के चारों और प्रदक्षिणा पथ बना हुआ है, तथा मंदिर के बहार नंदी की विशाल मूर्ति स्थित है। मंदिर के भीतर भगवान श्री कृष्ण, पांच पांडव, द्रौपदी, नंदी, वीरभद्र और अन्य देवताओं की मूर्तियां उकेरी गयी है।  मंदिर के गर्भगृह में बैल की पीठ के आकर का शिवलिंग स्थित है। मंदिर के पीछे भीम शिला और आदिशंकराचार्य की समाधी स्थित है। पहाड़ों के बिच इतने दुर्गम स्थान पर विशाल चट्टानों से बने इस भव्य और विशाल मंदिर का निर्माण बहुत ही बारीकी से किया गया है। इस मंदिर को बनाने के लिए किस तकनीक का प्रयोग किया गया था यह एक आश्चर्य का विषय है।

 

केदारनाथ मंदिर का इतिहास 

श्री केदारनाथ मंदिर का निर्माण 5000 वर्ष पूर्व पांडवों के प्रपोत्र जन्मेजय ने करवाया था। इसके बाद आठवीं सदी में आदिशंकराचार्य ने इस मंदिर जीर्णोद्धार करवाया था। 13 वीं सदी से 17 वीं सदी तक लगभग 400 साल तक एक छोटा हिमयुग का समय था, इस दौरान केदारनाथ मंदिर और हिमालय का अधिकांश क्षेत्र बर्फ की बहुत मोटी परत के निचे दबा रहा। 400 सालों तक बर्फ के नीचे दबे रहने के बावजूद यह मंदिर एकदम सुरक्षित था। 400 सालों तक भारी-भरकम ग्लेशियर इस मंदिर से टकराकर और रगड़ते हुए गुजरते रहे, लेकिन यह मंदिर अपनी जगह पर अचल स्थित रहा, जिससे इस मंदिर की सुद्रढ़ बनावट और आश्चर्यजनक मजबूती का पता चलता है। इस मंदिर की बाहरी दीवारों पर ग्लेशियर की रगड़ के निशान बने है, जबकि अंदर की दीवारें एकदम समतल और चिकनी है जैसे उन पर पोलिश की गयी हो। 

 

जून 2013 में केदारनाथ मंदिर ने हिमालय के  इतिहास की सबसे बड़ी प्राकतिक आपदा का सामना किया और सुरक्षित बचा रहा। जून 2013 में उत्तराखंड में  बहुत अधिक बारिश हुई जिससे उत्तराखंड की सभी नदियां उफान पर थी। केदारनाथ में भी बहुत अधिक बारिश हुई जिससे ग्लेशियरों की बर्फ पिघलने लगी और मन्दाकिनी नदी उफान  पर आ गयी। केदारनाथ मंदिर के 2 किलोमीटर पीछे पहाड़ों में स्थित चैराबाड़ी झील में ग्लेशियर से पिघल कर बहुत अधिक पानी इखट्टा हो गया। झील के पूरी तरह भर जाने के बाद पानी बहने से झील के तटबंध में कटाव हो गया, जिससे 400 मीटर लम्बी, 200 मीटर चौड़ी और 20 मीटर गहरी झील कुछ ही मिनटों में खाली हो गयी। इससे केदारनाथ मंदिर में बहुत ही भयानक बाढ़ आयी जिसमें हजारो लोग मारे गए। 

 

यह भयानक बाढ़ सबसे पहले सीधे केदारनाथ मंदिर से आकर टकराई थी, परन्तु चमत्कारिक रूप से एक बहुत ही विशाल चट्टान बाढ़ में बहकर आयी और मंदिर के ठीक पीछे आकर स्थित हो गयी, जिससे बाढ़ का पानी दो हिस्सों में बंट गया और मंदिर के अगल बगल से गुजर गया, जिससे यह मंदिर सुरक्षित बच गया। यह बाढ़ इतनी भयानक थी की केदारनाथ मंदिर के आगे 18 किलोमीटर तक सबकुछ बाढ़ में बह गया। आज भी यह विशाल चट्टान मंदिर के पीछे स्थित है, इस चट्टान को भीमशिला कहा जाता है। श्री केदारनाथ मंदिर आने वाले सभी भक्त, मंदिर में दर्शन करने के बाद इस भीमशिला के भी दर्शन करते है। 

 

श्री केदारनाथ मंदिर के कपाट खुलने और बंद होने का समय 

श्री केदारनाथ मंदिर पहाड़ों के बिच बहुत ही दुर्गम स्थान पर स्थित है। यहां सर्दियों के मौसम में इतनी अधिक बर्फ़बारी होती है की पूरा मंदिर बर्फ में समा जाता है, इसलिए यह मंदिर पूरे साल में लगभग 6 महीने बंद रहता है। अक्टूबर-नवंबर में दीपावली के बाद आने वाली भाईदूज के दिन इस मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते है, तथा अप्रैल-मई में आने वाली अक्षय तृतीया को मंदिर के कपाट पुनः खोल दिए जाते है। 



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