Satyug Me Samay Yatra Ki Kahani
सतयुग में समय यात्रा की कहानी
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Satyug Mein Samay Yatra ki Kahani |
1 कल्प = 14 मन्वन्तर।
वेदो के अनुसार 1 कल्प में 14 मन्वन्तर होते हैं जिनके नाम 1. स्वयंभू , 2. स्वरोचिष , 3. औत्तमी , 4. तामस, 5. रैवत, 6. चाक्षुस, 7. वैवस्वत, 8. सूर्यासवार्नी, 9. दक्षसवर्णि, 10. ब्रह्मसवर्णी, 11. धर्मसवर्णी, 12. रूद्रसवर्णि, 13. देवसवर्णि, 14. इंद्रसवर्णि. हैै.
वेदो के अनुसार इस कल्प के 14 में से 6 मन्वन्तर बीत चुके है और अभी सातवां मन्वन्तर वैवस्वत चल रहा है। आगे अभी 7 मन्वन्तर और होने बाकि है।
1 मन्वन्तर = 71 चतुर्युगी
1 चतुर्युगी = 4 युग
1 चतुर्युगी में चार युग होते है जिन्हें सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग , कलयुग कहा जाता है।
द्वापरयुग की अवधि = 864,000 वर्ष
कलयुग की अवधि = 432,000 वर्ष
Total = 4,320,000 वर्ष
इस प्रकार एक चतुर्युगी में 4,320,000 वर्ष होते है तथा एक कल्प में (4,320,000 x 71 x 14 ) = 4,294,080,000 वर्ष होते है।
समय यात्रा की कहानी
हिन्दुधर्म की पौराणिक कथाएं समय यात्रा और परग्रही यात्रा के किस्सों से भरी हुई है जो की हजारो सालो से सुनाये जा रहे है, हिन्दुधर्म की एक कथा के अनुसार सतयुग में रैवतक नाम के राजा थे जिनका सम्पूर्ण पृथ्वी पर शासन था। उनकी एक पुत्री थी जिसका नाम राजकुमारी रेवती था, राजकुमारी रेवती सर्वगुण संपन्न थी, तथा उसे हर प्रकार की शिक्षा दी गयी थी। जब राजकुमारी रेवती विवाह के योग्य हुई तो राजा रैवतक ने उसके विवाह के लिए योग्य वर की तलाश शुरू की, परन्तु बहुत वर्षो तक तलाश करने के बावजूद वह अपनी पुत्री के लिए योग्य वर नहीं ढूंढ पाए। अंत में उन्होंने सोचा की राजकुमारी रेवती के विवाह के विषय में स्वयं ब्रम्हा जी से ही पूछ लिया जाये की रेवती का विवाह किस्से होगा। ऐसा निर्णय लेकर राजा रैवतक ने अपनी पुत्री को साथ में लेकर ब्रह्मलोक जाने का निश्चय किया।
ब्रह्मलोक पहुंचने पर उन्होंने ब्रह्मा जी से राजकुमारी रेवती के विवाह के विषय में पूछा तब ब्रह्म जी ने कहा, हे राजन ब्रह्मलोक में समय की गति बहुत अधिक धीमी है, आपने जो यह थोड़ा समय ब्रह्मलोक में बिताया है उतने समय में पृथ्वी पर सतयुग और त्रेतायुग बीत चुके है तथा पृथ्वी पर आप का साम्राज्य और आप के समय के सभी लोग समाप्तः हो चुके है, इसलिए आप तुरंत ही यहां से लौट जाइये आप जब तक पृथ्वी पर पहुंचेंगे तब तक द्वापरयुग का भी अंतिम समय चल रहा होगा । उस समय आपको पृथ्वी पर भगवान् श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम मिलेंगे जो आप की पुत्री के लिए योग्य वर साबित होंगे।
यह सुन कर राजा रैवतक भयभीत हो गए और तुरंत ही ब्रह्मलोक से पृथ्वी पर लौट आये। राजा रैवतक जब पृथ्वी पर पहुंचे तो पृथ्वी के देखकर वे आश्चर्यचकित रह गए, उनके अनुसार तो उन्हें पृथ्वी से ब्रह्मलोक जाकर वापस आने में कुछ ही समय लगा था, लेकिन इतने थोड़े से समय में पूरी पृथ्वी का रूप बदल चूका था, अब पृथ्वी पर सतयुग के जैसे जिव जंतु पेड़ पौधे और वातावरण नहीं थे, पृथ्वी पर ऐसे जिव जंतु और पेड़ पौधे दिखाई दे रहे थे जो उन्होंने पहले कभी नहीं देखे थे, पृथ्वी का भूगोल भी अब पहले के सामान नहीं था तथा उनके साम्राज्य का भी सम्पूर्ण विनाश हो चूका था। यह सब देखकर राजा रैवतक बहुत चिंतित हो ऊठे और वे बिना देर किये अपनी पुत्री के साथ श्री कृष्ण और बलराम के राज्य पहुंच गए। वहां पहुँच कर उन्होंने कृष्ण और बलराम को अपने साथ घटित हुई पूरी घटना से अवगत कराया, यह घटना सुन कर कृष्ण के बड़े भाई बलराम राजकुमारी रेवती से विवाह करने को सहमत हो गए और इस प्रकार उनका विवाह संभव हो पाया।
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